निनु- डी - कुन्हा कोचिंग के जगह गोवा को राजधानी बनाया। इसने सेंटीयोभा , हुबली, दीव में पुर्तगाली बस्तियों को स्थापित किया। पुर्तगीज पूर्वी तट के कोरोमंडल तट के मसूलीपट्टनम और पुलीकट शहरों में वस्त्र एकत्र करते थे। और उसे यूरोप के बाजार में बेच देते थे। इस प्रकार पुर्तगाली व्यापारी क्षेत्र में समृद्ध होते गए।
इस समृद्धि के साथ पुर्तगाली उदंड एवं महत्वकांक्षी भी होते चले गए। हिंद महासागर में सभी जगह से कर्टिस (tax)लेना शुरू किया। यहां तक की अकबर को भी पुर्तगालियों से परमिट लेना पड़ा।पुर्तगाली समुद्र में आने जाने वाले जहाजों को लूटना भी प्रारंभ कर दिया। भारतीय जनता ने अपनी एक पैंठ नहीं बना सके। धार्मिक रूप से अशाहिस्नु रहे। फलतः अन्य यूरोपीय कंपनियों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सका। और धीरे-धीरे पुर्तगाली कमजोर होते चले गए। यद्यपि भारत में सबसे अंतिम समय तक पुर्तगाली ही रहे। 1961 ई. में जब गोवा को भारत में सम्मिलित कर लिया गया, तो अंतिम तौर से भारत में पुर्तगालियों का समाप्त हो गया।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
1.पुर्तगाली मालाबार और कोंकण तट से अधिक काली मिर्च का निर्यात करते थे। मालाबार तट से अदरक, दालचीनी, चंदन, हल्दी, नील, आदि का निर्यात करते थे। उत्तर पश्चिम भारत से वस्त्र, दक्षिण पश्चिम एशिया से लेह(चूड़ी बनाने वाला) लॉन्ग,कस्तरी इत्यादि खरीदते थे। बदले में पुर्तगाली भारत को बड़ी मात्रा में सोना चांदी और बहुमूल्य रत्न भुगतान करते थे।
2. पुर्तगाली भारत आगमन से तंबाकू जहाज निर्माण तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई। आलू, लाल मिर्च भी वही लाए थे।
3.अल्फांसो डिसूजा के काल में जेसोरिट संत फ्रांसिस को जेवियर्स भारत याए (उन्हीं के नाम पर संत जेवियर्स है) फुर्तगाली इसी दौरान ब्राजील जैसे नए उपनिवेश की खोज कर ली। उनकी दिलचस्पी भारत में कम हो गई।
4.ईसाई धर्म का फादर एक्का वीवा और मानस रेट, अकबर के दरबार में पहुंचा और धर्म सभा में भाग लिया।
5.फुर्तगली के साथ भारत में "गोयिक"स्थापत्य कला का आगमन हुआ।